देवदासी प्रथा जैसी घृणित कुरीतियों की मौजूदगी देश के लिए अभिशाप है!
सामान्यतः देखने में आ रहा है पिछले एक दशक से झूठी पटकथा पर आधारित फिल्मों के निर्माण का प्रचलन जोरो पर है । निर्माता निर्देशक धन कमाने की लालसा में इतिहास के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और झूठी पटकथा पर आधारित फिल्मों के माध्यम से समाज में वैमनस्यता फैलाने में सहायक की भूमिका निभा रहे हैं । यहां उन फिल्मों के नाम उजागर करना आवश्यक तो नहीं लेकिन जनमानस उनके नामों से भली भांति परिचित हैं।
कभी धर्मांतरण के नाम पर तो कभी इतिहास में उल्लेखित शासकों की कहानियों में छेड़छाड़ करने के अपराधी निर्माता निर्देशक यह भूल जाते हैं कि उनकी निर्मित फिल्मों को हकीकत मनाकर कुछ कथित लोग देश में वैमनस्यता फैलाकर समाज में अशांति का माहौल बनाते हैं।
गौरतलब हो कि कथित धर्मांतरण की आड़ तो कभी कश्मीर में पंडितों के साथ खूनी संघर्ष तो कभी शिवाजी,संभाजी ओर मुगल शासक औरंगजेब तो कभी किसी अन्य मुगल शासक के नाम पर झूठी पटकथा पर आधारित फिल्मों का निर्माण किया गया। करोड़ों कमाने और देश और समाज में वैमनस्यता फैलाने के बाद सार्वजनिक रूप से माफी मांगने वाले निर्माता निर्देशक देशद्रोह के अपराधी हैं।जिनके द्वारा कभी धर्म विशेष या राज्य विशेष पर हमला किया तो कभी गलत निराधार मनगढ़ंत इतिहास परोसकर देश का माहौल खराब किया है। केरल स्टोरी के नाम पर फर्जी कथानक पर फिल्म बनाने वालों को एनसीआरबी के उन आंकड़ों से कोई सरोकार नहीं जो गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों महिलाओं के लापता होने के तथ्य नज़र नहीं आए हैं।
भारत में महिला विरोधी अभियान आज से नहीं देश की आजादी से पूर्व ही नही वरन पुरातन काल से देखने में आया है। हमारे समाज में बाल विवाह, भूर्ण हत्या सहित सबसे पुरानी और घृणित कुप्रथा देवदासी आज भी मौजूद है और हमारी सरकारें चाहकर भी इस घृणित प्रथा को जड़ मूल से नष्ट करने में नाकाम रही हैं और यह प्रथा आज भी जीवित है जो भारतीय महिला की स्वतंत्रता ,अस्मिता,स्वाभिमान के लिए कलंक का प्रमाण है।
आज हम उसी देवदासी प्रथा पर आप को उसकी सच्चाई से रूबरू करा रहे हैं। एक मान्यता अनुसार देश में देवदासी प्रथा के अंतर्गत देवी/देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करना होता था । इस प्रथा के अनुसार, एक बार देवदासी बनने के बाद ये बच्चियां न तो किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकती है और न ही सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती है। देवदासी शब्द दुनियाभर के लोगों के लिए भले ही किसी अंजान, अपरिचित शब्द की तरह हो, लेकिन दक्षिण भारत के समाज की यह एक कड़वी सच्चाई है। ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के मंदिरों में अभी भी देवदासी प्रथा प्रचलित है। यह कुप्रथा भारत में आज भी महाराष्ट्र और कर्नाटक के कोल्हापुर, शोलापुर, सांगली, उस्मानाबाद, बेलगाम, बीजापुर, गुलबर्ग आदि में विद्यमान है।
कर्नाटक के अधिकतर शैव मंदिरों में सुबह स्वस्ति मंत्रों के उच्चारण के समय, रथयात्रा, रंगभोग और अंगभोग में देवता के समक्ष देवदासी की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। मत्स्य पुराण के अध्याय 70 में 41-63 श्लोक में कहा गया है कि देवदासियों को संतान होना कोई पाप नहीं है। आज भी इस कुप्रथा को चोरी छिपे अपनाया जाता है। इस प्रथा में शामिल 90 फीसदी लड़कियां अनुसूचित जाति और जनजाति से तालुका रखतीं हैं। बड़ी कुल की लड़कियां इस कुप्रथा का हिस्सा नहीं होती हैं। ना ही लड़के की पत्नी इसका हिस्सा होती हैं। लड़के सामान्य जीवन जीते हैं। 2008 के कर्नाटक राज्य के महिला विकास निगम के सर्वे के अनुसार राज्य में 40600 कुल देवदासियां थीं। पर एक गैर सरकारी संस्था ने 2018 में अपने आंकड़ों ने देवदासियों की संख्या 90000 बतायी थी। कर्णाटक विजयनगर के कुड़लीगी में 120 गांवों में 3 हज़ार से अधिक देवदासियां होने का अनुमान लगाया गया है। जिनमें 20 फीसदी लड़कियां 18 साल से कम आयु की पाई जाती हैं।
प्राप्त जानकारी अनुसार कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस प्रथा को क्रमशः साल 1982 और 1988 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि आज भी कथित तौर पर भारी संख्या में महिलाएं देवदासी के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं। कुछ साल पहले आई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रपट के अनुसार देश में अब भी साढ़े चार लाख देवदासी हैं। आयोग ने यह भी कहा था कि दक्षिण भारत के मंदिरों में छोटी बच्चियों को देवदासी के रूप में रखने की परंपरा शारीरिक शोषण का एक बड़ा माध्यम है। हालांकि कर्नाटक में देवदासियों की 'येल्लम्मा' परंपरा आज भी बनी हुई है। इस परंपरा में लड़कियों को देवी येल्लम्मा की सेवा में बहुत कम उम्र में समर्पित कर दिया जाता है। इन देवदासियों को बाद में अपने जीवनयापन के लिए वेश्यावृत्ति के पेशे में उतरना पड़ता है। चूंकि येल्लम्मा देवदासियों को इस काम के लिए सामाजिक स्वीकृति मिली हुई होती है, इसलिए उन्हें कोई अपराधबोध नहीं होता। वैसे भी येल्लम्मा के अनुयायी ज़्यादातर गरीब तबके के हैं, जिनके जीवन में कई किस्म की दिक्कतें हैं।कर्नाटक के बेलगाम जिले के सौदती स्थित येल्लमा देवी के मंदिर में हर वर्ष माघ पुर्णिमा के दिन किशोरियों को आज भी देवदासियां बनाया जाता है।
भारत से देवदासी प्रथा खत्म न होने के बहुत से महत्वपूर्ण कारण हैं जिनके कारण यह कुप्रथा आज भी देश में जीवित है। देश में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय (JJ) अधिनियम, 2015 को अधिनियमित करते समय बच्चों के यौन शोषण के एक रूप में देवदासी रूपी इस कुप्रथा का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है। इसी प्रकार भारत के अनैतिक तस्करी रोकथाम कानून या व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 में भी देवदासियों को यौन उद्देश्यों हेतु तस्करी के शिकार के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है। यही मूल कारण है कि देश में देवदासी प्रथा को जड़मूल से समाप्त करने का कोई ठोस प्रबंध नही हुआ ,प्रतिबंधात्मक कदम के अभाव में यह प्रथा आज भी समाज में जीवित है।
साल 2019 में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), मुंबई और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS), बेंगलुरु द्वारा 'देवदासी प्रथा' पर दो नए अध्ययन किये गए। ये अध्ययन देवदासी प्रथा पर नकेल कसने हेतु विधायिका और प्रवर्तन एजेंसियों के उदासीन दृष्टिकोण की एक निष्ठुर तस्वीर पेश करते हैं। लेकिन अध्ययन का असर कागज़ों तक सीमित रह गया और कागजी कार्यवाही पर ही दम तोड़ गया।
वर्तमान स्थिति में देश में यदि महिला उत्थान या उनकी अस्मिता स्वाभिमान को संरक्षित करने का ज़रा भी ध्यान हो तो हमें देश में व्याप्त इस कुप्रथा देवदासी को समाप्त कर महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़कर उनकी स्वतंत्रता ,अस्मिता को कायम करना होगा।
देवदासी प्रथा एक प्राचीन और विवादास्पद प्रथा है जो भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित थी। इस प्रथा में, युवा लड़कियों को देवताओं या मंदिरों के नाम पर समर्पित किया जाता था, अक्सर उनके परिवारों द्वारा। देवदासियों को मंदिरों में सेवा करने, नृत्य करने और संगीत प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता था।
*देवदासी प्रथा के पहलू:*
1. *धार्मिक महत्व*: देवदासी प्रथा को धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के रूप में देखा जाता था।
2. *महिलाओं की स्थिति*: देवदासियों को अक्सर उच्च सामाजिक दर्जा प्राप्त था, लेकिन उनकी स्थिति जटिल और बहुस्तरीय थी।
3. *शोषण और उत्पीड़न*: देवदासी प्रथा में अक्सर महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न शामिल था, जिसमें यौन शोषण और जबरन वेश्यावृत्ति शामिल थी।
*देवदासी प्रथा के खिलाफ प्रयास:*
1. *कानूनी कार्रवाई*: भारत सरकार ने देवदासी प्रथा को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाए हैं।
2. *सामाजिक जागरूकता*: सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने देवदासी प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने और इसके खात्मे के लिए काम किया है।
3. *महिला सशक्तिकरण*: महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के माध्यम से देवदासी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा रही है।
*देवदासी प्रथा के प्रभाव:*
1. *महिलाओं की स्थिति*: देवदासी प्रथा ने महिलाओं की स्थिति को प्रभावित किया है और उनके अधिकारों का हनन किया है।
2. *सामाजिक संरचना*: देवदासी प्रथा ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया है और इसके परिणामस्वरूप सामाजिक और आर्थिक असमानताएं उत्पन्न हुई हैं।
देवदासी प्रथा एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है, और इसके खात्मे के लिए
निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
