पत्रकारिता का युग और अस्तित्व खोती कलम?
व्यंगकार – राजेंद्र सिंह जादौन
एक समय था जब पत्रकारिता का अपना एक महत्व था।
जब लेखक अखबारों में प्रकाशित संपादकीय पढ़ता, अच्छी किताबें समझता, समाज की पीड़ा और खुशियों को महसूस करता, और फिर अपने विचारों को शब्दों में ढालकर पाठक के सामने प्रस्तुत करता। उस युग में पत्रकारिता न केवल सूचना का साधन थी, बल्कि समाज की चेतना और दिशा देने वाली शक्ति भी थी।
लेखक और पत्रकार दोनों को अपनी कलम पर विश्वास था। वे जानते थे कि हर शब्द, हर पंक्ति, हर संपादकीय का असर होता है। उनके लेखन में समाज की गरिमा, नैतिकता और विवेक झलकते थे। पाठक भी सोचता था, आत्मनिरीक्षण करता था, और समाज में बदलाव की उम्मीद करता था।
फिर आए विश्वविद्यालयों का युग। पत्रकारिता के नाम पर विश्वविद्यालय खोले गए। अब युवा पत्रकारों को पढ़ाया जाने लगा “अच्छा पत्रकार बनने के लिए अच्छी किताबें पढ़ो। इतिहास जानो। समाज को समझो। विचारशील बनो।”कुछ हद तक यह आवश्यक और सराहनीय कदम था। ज्ञान, अध्ययन और सोच का महत्व बढ़ा। युवाओं ने इतिहास पढ़ा, समाजशास्त्र और राजनीति की किताबों को समझा, और अपने विचारों को शब्दों में ढालने की कोशिश की।
लेकिन उसके बाद आया नया युग जहाँ पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। अब नया सूत्र था अच्छा पत्रकार बनने के लिए नेताओं के पीछे घूमो। उनके भाषणों और बैठकों की रिपोर्ट बनाओ। उनकी तारीफ़ करो। आलोचना? वह क्या होती है?” अब कलम का अस्तित्व घटने लगा। विचार, स्वतंत्रता और विवेक दब गए। पत्रकारिता केवल सत्ता का आईना बनकर रह गई।
विश्वास और सत्य के लिए कलम लड़ती थी। अब वही कलम केवल ‘फेवरेट रिपोर्ट’, ‘ट्रेंडिंग न्यूज़’ और ‘संसदीय भाषण सार’ तक सीमित हो गई। जहाँ कभी लेखक और पत्रकार समाज को सोचने पर मजबूर करते थे,अब वही लोग केवल सत्ता को खुश करने और मीडिया मालिकों के हित साधने में लगे हैं।
मीडिया उद्योग ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय बना दिया। मीडिया मालिक दौलत गिनते हैं, सत्ता के पीछे भागते हैं, और पत्रकारों को ‘रिपोर्टिंग का ठेला’ बना दिया है। अब पत्रकारों की मुख्य योग्यता यह है कि वे कितनी जल्दी किसी नेता की तारीफ़ कर सकते हैं, कितने शब्दों में उनके भाषण का सार निकाल सकते हैं, और कितनी त्वरित खबरें सोशल मीडिया पर डाल सकते हैं।
विश्वविद्यालयों ने छात्रों को सिखाया कि ‘पत्रकारिता केवल नौकरी है, कला नहीं।’ अब पत्रकार बनने का मतलब केवल अच्छा वेतन, प्रतिष्ठान और सत्ता के समीपता है। सत्य, निष्पक्षता और विवेक ये सब केवल शब्दकोश में मौजूद हैं। लेखक और पत्रकार अब केवल पाठक की अपेक्षा नहीं देखते, बल्कि ‘क्लिक’, ‘लाइक’ और ‘व्यूज़’ की दौड़ में फंसे हैं।
पाठक भी दोषी है। सोचने की शक्ति खो चुकी जनता ने अब केवल शीर्षक और तस्वीरों में समाचार देखना सीख लिया है। समाचार पत्र और चैनल केवल उनके मनोरंजन और सनसनी के लिए काम करते हैं। गहराई और विश्लेषण का कोई महत्व नहीं रह गया। सत्य और विवेक की जगह केवल ‘ट्रेंडिंग’ और ‘हाइप’ ने ले ली है।
अब पत्रकारिता का युग केवल नाम का बचा है। किताबें पढ़ने और समाज को समझने वाले पत्रकार अब दुर्लभ हैं। नेताओं के पीछे दौड़ने वाले पत्रकारों की भीड़ बहुत बड़ी है। जहाँ कलम कभी समाज की आवाज़ थी, अब वही कलम सत्ता के गुलाम और मीडिया मालिकों के व्यापार का औजार बन गई है।
लेकिन अभी भी कुछ उम्मीद बाकी है। कुछ पत्रकार और लेखक हैं, जिन्होंने मौत को मित्र बना रखा है। वे सत्ता के पीछे नहीं दौड़ते। वे समाज की पीड़ा और खुशी को महसूस करते हैं। वे सोचते हैं, विवेक के साथ लिखते हैं, और कलम का सम्मान करते हैं। ऐसे लोग ही कलम को जीवित रखते हैं।
सच्चा पत्रकार वही है जो सत्ता से डरता नहीं।
वह वही है जो पाठक के विश्वास को महत्व देता है।
वह वही है जो समाज के दुख और आनंद को शब्दों में ढालता है। और जब वह ऐसा करता है, तो कलम फिर से चमक उठती है। समाज की आँखें खुलती हैं, और विचारों की आंधी उठती है।
पत्रकारिता का भविष्य इस पर निर्भर करता है कि कितने पत्रकार इस स्वतंत्रता और विवेक के रास्ते पर चलेंगे।
यदि सत्ता और व्यवसाय के दबाव में कलम बिकती रही,
तो पत्रकारिता केवल नाम मात्र रह जाएगी। और वही कलम, जो कभी समाज का आईना थी,वह अब केवल भौतिक लाभ और सत्ता का खेल बनकर रह जाएगी।
विश्वास, विवेक और स्वतंत्रता ये तीन चीज़ें हैं जो कलम को जीवित रखती हैं। और जब तक कुछ पत्रकार और लेखक इन्हें अपने भीतर रखते हैं, कलम का अस्तित्व समाप्त नहीं होगा।
पत्रकारिता का युग बदल गया है। लेकिन वही युग सच्ची पत्रकारिता के लिए चुनौती भी बन सकता है। जो कलम सत्ता का आईना बनकर नहीं,बल्कि समाज की आत्मा और विचारों का प्रतिबिंब बनेगा, वही पत्रकारिता का असली युग लाएगा।
और तब कलम फिर से चमकेगी,लेखक और पत्रकार समाज की पीड़ा और खुशी को शब्दों में ढालेंगे,सत्य को आवाज़ देंगे, और पाठक सोचेंगे, सवाल करेंगे, और बदलने की ताकत पाएंगे।
