पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल: अधिकारियों का दुर्व्यवहार और पत्रकारों की जिम्मेदारी

 पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल: अधिकारियों का दुर्व्यवहार और पत्रकारों की जिम्मेदारी

रायपुर, 14 अक्टूबर 2025: भारत में पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारों की विश्वसनीयता और उनकी सुरक्षा दोनों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियोज से लेकर न्यायिक मामलों तक, पत्रकारों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसी क्रम में, छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों में पत्रकारों के संगठनों ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है और सुधार की मांग की है।

हाल ही में एक वीडियो ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया, जिसमें एक अधिकारी ने एक पत्रकार का कॉलर पकड़कर उसे बाहर फेंक दिया और गला दबाने की कोशिश की। यह घटना कोई अपवाद नहीं है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे क्षेत्रों में पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं, जहां एक पत्रकार के शव को सेप्टिक टैंक में फेंक दिया गया था। कई मामलों में पत्रकारों को झूठे मुकदमों में फंसाकर वर्षों तक जेल में रखा जाता है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं, जहां सत्ता के इशारे पर पत्रकारों को निशाना बनाया जाता है।

लेकिन सवाल केवल पत्रकारों पर हो रहे अत्याचारों का नहीं है। क्या पत्रकारों ने खुद अपनी साख को बचाने के लिए पर्याप्त प्रयास किए हैं? आज की स्थिति यह है कि जब कोई व्यक्ति कहता है, "मैं पत्रकार हूं," तो सामने वाला पूछता है, "किस पार्टी का हो?" कुछ पत्रकार वसूली, ब्लैकमेलिंग, खबरों को दबाने या राजनीतिक एजेंडा चलाने में संलिप्त पाए जाते हैं, जिससे पूरी बिरादरी की छवि धूमिल हो रही है। वहीं, कुछ अधिकारी और नेता सत्य उजागर करने वाले पत्रकारों को अपराधी मानकर उन पर हमला करते हैं।

संवैधानिक स्थिति और सीमाएं

भारतीय संविधान में "पत्रकार" शब्द का उल्लेख नहीं है। मीडिया को "चौथा स्तंभ" कहना मात्र प्रतीकात्मक है। पत्रकारों के अधिकार अनुच्छेद 19(1)(a) से निकलते हैं, जो हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) राज्य को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक शांति, शालीनता, नैतिकता, मानहानि या अन्य आधारों पर युक्तिसंगत प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।

इसका मतलब है कि कलम की ताकत जितनी बड़ी है, उतनी ही उस पर जिम्मेदारी भी है। पत्रकारों को सत्य की खोज में रहना चाहिए, लेकिन झूठी या सनसनीखेज खबरों से बचना चाहिए।

पत्रकारिता के आचरण संबंधी दिशानिर्देश

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने पत्रकारों के लिए स्पष्ट नियम निर्धारित किए हैं:

किसी व्यक्ति की मानहानि, अफवाह या असत्य जानकारी का प्रकाशन न किया जाए।

महिलाओं, बच्चों, पीड़ितों या संवेदनशील मामलों में पहचान उजागर न की जाए।

POCSO एक्ट, चिकित्सा गोपनीयता या अन्य संवेदनशील मुद्दों पर विशेष सावधानी बरती जाए।

पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य सत्य, समाज और राष्ट्रहित होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ।

ये दिशानिर्देश सभी राज्यों में लागू हैं, लेकिन उनका पालन कितना हो रहा है, यह एक बड़ा सवाल है।

अधिकारियों और नेताओं की भूमिका

नेताओं और अधिकारियों को भी समझना चाहिए कि यदि उनके सार्वजनिक कार्यों या निर्णयों की आलोचना शिष्टाचार और कानून के दायरे में हो रही है, तो इसे व्यक्तिगत हमला न मानें। यदि कोई पत्रकार एकतरफा या एजेंडा-आधारित रिपोर्टिंग कर रहा है, तो समाज खुद उसकी विश्वसनीयता का फैसला करेगा। ऐसे पत्रकारों के पाठक और दर्शक स्वतः कम हो जाते हैं।

आवश्यक सुधार: सेल्फ-रेगुलेटिंग बॉडी की मांग

छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के संगठनों, जैसे छत्तीसगढ़ जर्नलिस्ट्स यूनियन और अन्य स्थानीय संघों ने एक "सेल्फ-रेगुलेटिंग बॉडी" बनाने की मांग की है। यह बॉडी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया या न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) की तर्ज पर होनी चाहिए, लेकिन पूरी तरह स्वतंत्र। इसमें स्वतंत्र पत्रकार, स्ट्रिंगर्स, फ्रीलांस रिपोर्टर्स और श्रमजीवी पत्रकार शामिल हों।

मध्य प्रदेश में मध्य प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन और अन्य संगठनों ने भी इसी तरह की पहल की है, जहां पत्रकारों की सुरक्षा और आचरण पर फोकस है। इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक और अन्य राज्यों में पत्रकार संगठन जैसे इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) और स्टेट-लेवल यूनियंस सक्रिय हैं। ये संगठन पत्रकारों की सुरक्षा, ट्रेनिंग और एथिक्स पर काम कर रहे हैं, लेकिन एक राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत सेल्फ-रेगुलेटिंग सिस्टम की जरूरत महसूस की जा रही है।

इस प्रस्तावित बॉडी के कार्यक्षेत्र में शामिल हो सकता है:

पत्रकार की परिभाषा और योग्यता तय करना।

वसूली या ब्लैकमेलिंग के आरोपों पर नोटिस, चेतावनी और सार्वजनिक ब्लैकलिस्ट जारी करना।

अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार पर जांच दल गठित कर रिपोर्ट, ट्रांसफर या एफआईआर की सिफारिश।

पत्रकारों की मर्यादा, अधिकार और आचरण पर नियमित वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित करना।

इस बॉडी में शिक्षित व्यक्ति, लॉ ग्रेजुएट्स, समाज और राजनीति के जानकार शामिल हों, या लोकतांत्रिक चुनाव से चुने जाएं। कॉर्पोरेट मीडिया के पत्रकार अक्सर नौकरी की मजबूरी में सत्ता की आलोचना से बचते हैं, जबकि स्वतंत्र पत्रकारों को ब्लैकमेलर करार दिया जाता है। सोशल मीडिया जर्नलिज्म को मुख्यधारा मीडिया द्वारा प्रतिस्पर्धी माना जाता है, जिससे एकता की कमी दिखती है।

निष्कर्ष

पत्रकारिता केवल सत्ता से सवाल पूछने का माध्यम नहीं है, बल्कि खुद को जवाबदेह बनाने का भी। यदि पत्रकार अपनी विश्वसनीयता बनाए रखें, तो कोई अधिकारी या नेता उनका अपमान करने की हिम्मत नहीं करेगा। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों के पत्रकार संगठनों को एकजुट होकर इस दिशा में काम करना चाहिए।

जय हिंद!

लेखक: हरिशंकर पाराशर

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